तुझ से किया है दिल ने बयाँ, किया निगाहों को ज़ुबाँ वादा वफ़ा का किया तुझ से लिया है खुद को मिला, लिया दुआओं का सिला जीने का सपना लिया
दिल के मकान में तू मेहमान रहा, रहा आँखों की ज़बान करे है बयान कहा, अनकहा
कुछ तो है तुझ से राबता कुछ तो है तुझ से राबता क्यूँ है ये? कैसे है ये? तू बता कुछ तो है तुझ से राबता
Mmm, मेहरबानी जाते-जाते मुझ पे कर गया गुज़रता सा लमहा एक दामन भर गया तेरा नज़ारा मिला, रोशन सितारा मिला तक़दीर का जैसे कोई इशारा मिला
तेरा अहसान लगे है जहाँ में खिला, हाँ, खिला सपनों में मेरे तेरा ही निशान मिला, हाँ, मिला
कुछ तो है तुझ से राबता कुछ तो है तुझ से राबता क्यूँ है ये? कैसे है ये? तू बता कुछ तो है तुझ से राबता
हद से ज़्यादा मोहब्बत होती है जो कहते हैं कि इबादत होती है वो
क़ुसूर है या कोई ये फ़ितूर है? क्यूँ लगे सब कुछ अँधेरा है, बस यही नूर है? कुसूर है या कोई ये फ़ितूर है? क्यूँ लगे सब कुछ अँधेरा है, बस यही नूर है? जो भी है मंज़ूर है
ओ, कुछ तो है तुझ से राबता कुछ तो है तुझ से राबता (तुझ से है राबता) क्यूँ है ये? कैसे है ये? तू बता कुछ तो है तुझ से राबता (क्या जाने, क्या पता)
कुछ तो है तुझ से राबता कुछ तो है तुझ से राबता (तुझ से है राबता) क्यूँ है ये? कैसे है ये? तू बता कुछ तो है तुझ से राबता (क्या जाने, क्या पता)